मुक्त जनपद
१
जनपद की अवधारणा में स्थानीयता के साथ ही एक खुलापन और विस्तार है इसलिए जनपद अधिक समावेशी सामाजिक-सांस्कृतिक धारणा है।
वैशाली जनपद कहाँ से शुरू होकर कहाँ मिथिला और कहाँ मगध में घुल-मिल जाता है इसकी परवाह न मिथिला को है, न मगध को और न ही वैशाली को।
औपनिवेशिक सत्ता और उसकी कोख से उपजा उत्तर औपनिवेशिक राष्ट्र-राज्य जनपदीय बोलियों की गणना करता है और जनपद को उसकी हद्द में बाँध कर रखना चाहता है।
२
हमारे समय के विराट लोकतांत्रिक विश्व में कहाँ किस हाल में है जनपद?बकौल कवि श्रीकांत वर्मा-
मगध
मगध नहीं रहा
सभी हृष्टपुष्ट हैं
कोई नहीं रहा कृशकाय
किसी में दया नहीं
किसी में हया नहीं
कोई नहीं सोचता,जो सोचता है
दोबारा नहीं सोचता।
पुनः
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!
वर्गीकरण,अपवर्जन और सीमांकन की सभी कोशिशों के बीच नगर-जनपद समेत समस्त जनपद अलगाव और ठहराव के दौर से गुजर रहे हैं।
पर जनपद महज जन का था ही कब ?
जन थे तो अभिजन भी थे।
काशी में बाम्हन थे और जुलाहे थे -और उनके बीच का कश-म-कश था।जनपदीय गणराज्य की निर्मिति तब भी एक अनवरत अस्थिर परिघटना ही थी।
जनपद की अवधारणा में स्थानीयता के साथ ही एक खुलापन और विस्तार है इसलिए जनपद अधिक समावेशी सामाजिक-सांस्कृतिक धारणा है।
वैशाली जनपद कहाँ से शुरू होकर कहाँ मिथिला और कहाँ मगध में घुल-मिल जाता है इसकी परवाह न मिथिला को है, न मगध को और न ही वैशाली को।
औपनिवेशिक सत्ता और उसकी कोख से उपजा उत्तर औपनिवेशिक राष्ट्र-राज्य जनपदीय बोलियों की गणना करता है और जनपद को उसकी हद्द में बाँध कर रखना चाहता है।
२
हमारे समय के विराट लोकतांत्रिक विश्व में कहाँ किस हाल में है जनपद?बकौल कवि श्रीकांत वर्मा-
मगध
मगध नहीं रहा
सभी हृष्टपुष्ट हैं
कोई नहीं रहा कृशकाय
किसी में दया नहीं
किसी में हया नहीं
कोई नहीं सोचता,जो सोचता है
दोबारा नहीं सोचता।
पुनः
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!
वर्गीकरण,अपवर्जन और सीमांकन की सभी कोशिशों के बीच नगर-जनपद समेत समस्त जनपद अलगाव और ठहराव के दौर से गुजर रहे हैं।
पर जनपद महज जन का था ही कब ?
जन थे तो अभिजन भी थे।
काशी में बाम्हन थे और जुलाहे थे -और उनके बीच का कश-म-कश था।जनपदीय गणराज्य की निर्मिति तब भी एक अनवरत अस्थिर परिघटना ही थी।
तो क्या वैशाली और कोसल हमारी स्मृतियों का कम और हमारी कल्पना का गणराज्य अधिक है ?
कोसल मेरी कल्पना में एक गणराज्य है
कोसल में प्रजा सुखी नहीं
क्योंकि कोसल सिर्फ कल्पना में गणराज्य है।
बहरहाल बेहद जरूरी है कि हम इस इंसानी तसव्वुर को बनाये रखें। यह जरूरी है क्योंकि अब भी ऊँट हमेशा के लिए किसी एक करवट बैठ नहीं गया है।बैठना भी चाहे तो हम उसे बैठने नहीं देंगे।
३
मित्रों! इस मुक्त आभासी जनपद में हम(मैं!) आप सब की बाट जोहेंगे।भाषा का कोई बंघन नहीं-अंग्रेजी,हिन्दी या हिंगलिश कुछ भी चलेगा।संसकिरत कबीरा कुप जल भाखा बहता नीर-सो पंचमेल खिचड़ी हो तो कोई हर्ज नहीं।विषय की भी कोई खास सीमा नहीं,गोया हम अपने जनपद -वैशाली,मिथिला,मगध,अंग आदि -की बात ज्यादा करेंगे ,पर बेशक आपकी इतर जनपदीय बातों को भी तव्वजो देंगे।
हमारा समय नेटजाल की मायावी दुनिया में नरभसाने का नहीं है,यह अपने मन माफिक बोलने और चहकने का दौर है।
आमीन
टिप्पणी
अनूप शुक्ला said...
स्वागत है मनोज जी आपका- हिंदी चिट्ठाजगत में।
4:17 AM
Raman said...
हिन्दी चिट्ठे की शूरूआत के लिये बहुत बहुत बधाईयां
7:10 AM
Bihari Hawk said...
मनोज जी, इस द्विभाषी Blog शुरूआत करने के लिये धन्यबाद।हम भी आपके इस मुक्त जनपद का हिस्सा होना चाहते हैं।मुझे कृपया ये बतायें कि मैं कोइ Original Blog कैसे Post कर सकता हुँ?
4:02 PM
2 Comments:
स्वागत है मनोज जी आपका- हिंदी चिट्ठाजगत में।
हिन्दी चिट्ठे की शूरूआत के लिये बहुत बहुत बधाईयां
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