Thursday, September 29, 2005

उबर-खाबड़ दुनिया के सपाट विश्‍लेषक


क्‍या व्‍यवसाय और उधम की दुनिया अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सपाट हो चुकी है?कम से कम न्‍युयार्क टाईम्‍स के विश्‍लेषक थामस फ्राइडमैन को अभी हाल तक ऐसा ही लगता रहा है। अगर दुनिया पुरी तरह चौरस नहीं भी हुई तो वैश्‍वीकरण के लेटेस्‍ट वर्जन-'ग्‍लोबलाईजेसन-३.०' के साथ दुनिया जल्‍दी ही सपाट होने वाली है।फ्राइडमैन का मानना है कि वैश्‍वीकरण को राजनैतिक समर्थन अब भारत और चीन जैसे देशों से मिलेगा,वैश्‍वीकरण का विरोध अब ग्‍लोबलाइजेशन-२.० से प्रभावित लैटिन अमेरिकी देश करेंगे।देखें- The World Is Flat: A Brief History of the Twenty-first Century

बुरा हो इस हैरिकेन कैटरीना और रीटा का जिसके कारण एक ओर जहाँ उनकी इस नई किताब का सेलिबरेशन एक खास सर्किल में चल ही रहा है,वहीं दुसरी ओर खुद फ्राइडमैन का स्‍वर बदल गया है।बुश प्रशासन से खासे दुखी फ्राइडमैन कहने लगे हैं कि हमाने बुश को समर्थन आतंकवाद के विरुध्‍द कड़ी कार्रवाई के लिए दिया लेकिन रिपब्‍लिनस ने इसका इस्‍तेमाल अपनी 'कंजरवेटिव' पालिसी को बेधड़क लागू करने में किया।हेराल्‍ड ट्रिब्‍यून मे प्रकाशित अपने हाल के एक लेख में फ्राइडमैन ने एक रिपब्‍लिकन पालिशीमेकर को उध्‍दृत किया है जिसका मानना है कि राज्‍य सरकार को आर्थिक मामले में उस हद तक छोटा कर देना चाहिए कि उसको बाथ टब में डुबाया जा सके।फ्राइडमैन व्‍यंग्‍य करते हुए लिखते हैं कि आखिर इस पालिशीमेकर की कोई जायदाद न्‍यु आरलियन्‍स में नहीं है।सो दुनिया की बात तो जाने हीं तो अच्‍छा संयुक्‍त राज्‍य अमेरिकाकी जमीन भी सपाट नहीं उबर-खाबड़ है। क्‍या फ्राइडमैन मानेंगे की ऐसी दुनिया के सपाट विश्‍लेषण की स्‍पष्‍ट सीमायें हैं?
साभार(चित्र)- http://www.nybooks.com/gallery/2557

Powered by Blogger