अगर सही तर्क नहीं है...
पिछले दिनों संसद के 'ऊपरी सदन' में धूमिल की एक कविता को लेकर बड़ा बवाल हुआ। राज्य सभा के सांसदों के बीच अद्भुत एकता कायम हुई। कुछ अन्य रचनाओं के अतिरिक्त सुदामा पाण्डेय धूमिल की कविता 'मोचीराम' को लेकर सांसद खासे परेशान रहे।सौभाग्य से श्री अनूप शुक्ला के प्रयास से धूमिल की यह कविता नेट पर उपलब्ध है। अपनी टिप्पणी नहीं जोड़ते हुए मैं चाहता हूँ कि आप मोचीराम कविता पढ़ें और अगर धैर्य हो तो सांसदों को भी सुन लें।
जब किसी ने संसद में सुझाया कि धूमिल नयी कविता के महत्वपूर्ण कवि हैं और उनकी रचनाओं को समीक्षकों ने महत्वपूर्ण माना है तो हमारे एक सांसद श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब उनकी सरकार आएगी तो ऐसे समीक्षक कहीं के नहीं रह जाऐंगे।सुनकर न गुस्सा आया न आश्चर्य हुआ,थोड़ी हँसी जरूर आयी- भाई कोशिश तो प्लेटो से लेकर हिटलर स्टालिन तक सबने की रविशंकर प्रसाद जी भी कोशिश करके देख लें!बहरहाल धूमिल की कुछ विवादित पंक्तियाँ यूं हैं-
और बाबूजी! असल बात तो यह है कि ज़िन्दा रहने के पीछे
अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी बेंचकर या रण्डियों की
दलाली करके रोज़ी कमाने में
कोई फर्क नहीं है
वैसे इन पंक्तियों को पूरी कविता के संदर्भ में ही समझना ठीक है। पूरी कविता अनूप शुक्ला के ब्लाग पर मौजूद है।